ये दिन, कितने मुश्किल
काश , तुम समझ सकते !
तुम नहीं समझोगे।
परीक्षा और प्रवेश परीक्षाओं का दौर
शहर में हूँ , मगर बिन बिजली के
ऊमस और गर्मी से बेहाल रात और दिन
घर से दूर दाना-पानी जुटाने की चिंता
अज्ञात भविष्य की ड़रावनी आशंका
और दोस्त, इस सब पर
टिकोरी से लदे आम पर
बे-समय कोयल की कूक
जी नहीं लगता, बेकल है मन
क्या करूँ ?
कस्तूरी
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