Friday, May 15, 2015

क्या कहूँ ?


ये दिन, कितने मुश्किल  
काश , तुम समझ सकते !
तुम नहीं समझोगे। 
परीक्षा और प्रवेश परीक्षाओं का दौर 
शहर में हूँ , मगर बिन बिजली के 
ऊमस और गर्मी से बेहाल रात और दिन 
घर से दूर दाना-पानी जुटाने की चिंता 
अज्ञात भविष्य की ड़रावनी आशंका 
और दोस्त, इस सब पर 
टिकोरी से लदे आम पर 
बे-समय कोयल की कूक 
जी नहीं लगता, बेकल है मन 
क्या करूँ ? 

कस्तूरी 



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