Friday, May 15, 2015

क्या कहूँ ?


ये दिन, कितने मुश्किल  
काश , तुम समझ सकते !
तुम नहीं समझोगे। 
परीक्षा और प्रवेश परीक्षाओं का दौर 
शहर में हूँ , मगर बिन बिजली के 
ऊमस और गर्मी से बेहाल रात और दिन 
घर से दूर दाना-पानी जुटाने की चिंता 
अज्ञात भविष्य की ड़रावनी आशंका 
और दोस्त, इस सब पर 
टिकोरी से लदे आम पर 
बे-समय कोयल की कूक 
जी नहीं लगता, बेकल है मन 
क्या करूँ ? 

कस्तूरी 



Monday, May 11, 2015

किसान की ज़मीन लेना पाप है

बहुत दिनों बाद अनगढ़ की ठीया पर जाने का अवसर मिला। पहुंचे तो देखा मंडली जमी हुई है।  नन्हें, बबलू, लच्छू  और लालता अनगढ़ को घेरे बैठे हैं। पीछे खड़े शिबु और मंगल गलबहियां डाले अनगढ़ की बात सुन मुस्किया रहे हैं। साईकिल के कैरियर पर बैठे मनगढ़ एक पैर गली की ज़मीन पर और एक पैर चौथरे की सीढ़ी पर टिका गली में आने जाने वालों को गंभीरता से नापजोख रहे हैं और मंडली की बात में शामिल भी है और नहीं भी। बगल के मंदिर की घंटी बज रही है और पुजारी जी मानस की चौपाई गुनगुना रहे हैं। अनगढ़ की आवाज़  इन सबके बीच से छनकर आ रही है। बात सीता मैया की दुखभरी कहानी पर हो रही है।
" अरे रे --- सीता मैया के जइसन तो कोई नहीं --- ढेर कस्ट सहलीं   --- कस्टन का अंत नहीं "
" पर गुरू , राम जी  ठीक नहीं कइलन, सारा दोस माई पर लगा कर " लच्छू ने सर के बालों में हाथ फेरते हुए कहा।
" आखिर ओ तो भगवान रहे, सब खबर नं  रखते हुई हैं ? " नन्हें चिहुंके।
" भगवान रहे त  का, अइलन त  मनुज अवतार में नं ?  कुछ मरजादा में उनहुँ के रहे के परी ? " लालता समझाने लगे।
"ये कौन बात हुई ? मरजादा के क्या मतलब हैं ?" शिबू उखड़कर बोला।
"यही मतलब है कि समाज में जो रिवाज़ है, उसके सन्दर्भ में हर काम और निर्णय का एक सही और नैतिक जवाब होना होता है।" मनगढ़ ने साईकिल के हैंडल पर कुछ झुकते हुए कहा।
" भाई, राम जी ने जो किया उसे  सही या गलत कहने वाले हम कौन है ? हम या तो उनके जितने बड़े हों या एकदम्मे मूढ़ हों,  तो कुछ कहें  भी।  हम तो दूनों  नहीं हैं " अनगढ़ ने धीरे से कहा।
"तो फिर हम क्या करें? क्या चुप्पी मार जायें, कुछ बोले ही नाही ? " लच्छू ने अनगढ़ की ओर सवाल किया।
" राम जी के राज में क्या गलत हुआ और क्या सही इस पर सोचने और बतियाने के लिए तोहरे पास ढेर टाइम हौ नं लच्छू।  ई काम तू पुजारी जी के जिम्मे छोड़ा नं । ओन्हें त इहै कमवै हव। तू एहू पर सोचबा कि आज क राजा का करत हव अउर ओके का करे के चाही ? " मंगल ने लच्छू का गमछा खींचते हुए कहा।
"आज क राजा भी तं  सीता मैया के बेदखल करत हौ ? सीता मैया तं धरती माई में समां गइलीं ।  अउर ई राजा हौ  कि ओनके कंपनी के हाथ बेचत हौ ।  मैया कहाँ जायें ? मैया के सारे बिटवा, किसान, आदिवासी सब  सर पटक-पटक कर रोवत हउवें, सब जने मिलकर राजा के समझावत हउवें , पर राजा हव कि मानत नाही। "   अनगढ़ का दर्द छलक पड़ा।
"हम्मै राजा बना दा त हमहूं बताइब कि का करे के चाही " लच्छू पलट कर बोले।
सभी ठठाकर हंस पड़े " अबे, तैं फटीचर राजा  बनबे  ?"
"काहे न बनी ? " अनगढ़ की आवाज़ चीरती हुई आई। "लच्छू ऐसा राजा बनने का दावा करें जो किसान की जमीन को छीनने की मनाही करदे । लेकिन लच्छू जी ऐसा सोचें तब नं । "
" कां लच्छू , अब बोला, किसान की ज़मीन ले लेना पाप  हौ  कि नाही ?" मनगढ़ ने लच्छू को ठेला।
लच्छू ने अंत में अपनी बात कह दी  "राजा लै  चाहे सेठ लै, किसी भी और काम के लिए किसान की ज़मीन लेना, पाप है , पाप के अलावा कुछ नहीं ।  सीता मैया क अउर कस्ट अब देखल न जात हव "

कस्तूरी