अपराजित
सर्दियों की शाम
दिनभर की थकान
रह-रहकर कौंध जाती है
एक तस्वीर...
शाम के धुंधलके में
बूढों के तानें और
रिरियाते बच्चों से घिरी
बाट तकती दो आंखें।
बेकल मन से उठती हूक
डुबा दे , एक गरम चाय के प्याले में।
साथियों के साथ गर्मजोशी
मालिकों के साथ रस्साखेंची
राजनैतिक सरगर्मी
बहसों का सैलाब
जीवन का संग्राम
और कल के लिए नई सोच
नया जोश और नया ...
आओ दोस्त, एक प्याला और
कस्तूरी
वाह! यथार्थ बयान किया आपने तो.
ReplyDeleteऔर फिर यही तो सच्चाई है.
बेहतरीन