Sunday, August 30, 2009

कारीगर और किसान



हम गुज़र गए
आँखे चुरा कर , दामन बचा कर
कारीगरों की गलियों से
खून बहता रहा
दोनों तरफ़ की नालियों में

घबरा कर गांवों की तरफ़ दौड़ पड़े
ताजी हवा, पहाड़, नदी , खुले आकाश से
नज़र उतरी धरती की हरियाली पर
और साँस जहाँ की तहां अटक गई .....

यहाँ तो लाशें ख़ुद को ढो रही हैं ...

-कस्तूरी

1 comment:

  1. वाह! यह बताना मुश्किल है कि चित्र ज्यादा बढ़िया है या कविता! :-)

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